"मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को खुद से पहले सुला देता, हूँ मगर रोज़ सुबह ये मुझसे पहले जाग जाती है।"
"मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को खुद से पहले सुला देता, हूँ मगर रोज़ सुबह ये मुझसे पहले जाग जाती है।"
"आइना देख कर तसल्ली हुई, हम को इस घर में जानता है कोई। "
"वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर, आदत इस की भी आदमी सी है। "
New Daily Quotes
"ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा, क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा। "
"हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में, रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया।"
"आप के बाद हर घड़ी हम ने, आप के साथ ही गुज़ारी है।"
"बहुत अंदर तक जला देती हैं, वो शिकायते जो बया नहीं होती।"
"मैंने दबी आवाज़ में पूछा? मुहब्बत करने लगी हो? नज़रें झुका कर वो बोली! बहुत।"
"कोई पुछ रहा हैं मुझसे मेरी जिंदगी की कीमत, मुझे याद आ रहा है तेरा हल्के से मुस्कुराना।"
"मैं दिया हूँ! मेरी दुश्मनी तो सिर्फ अँधेरे से हैं, हवा तो बेवजह ही मेरे खिलाफ हैं। "
"बिगड़ैल हैं ये यादे, देर रात को टहलने निकलती हैं। "
"उसने कागज की कई कश्तिया पानी उतारी और, ये कह के बहा दी कि समन्दर में मिलेंगे। "
"कभी जिंदगी एक पल में गुजर जाती हैं, और कभी जिंदगी का एक पल नहीं गुजरता। "
"हम तो अब याद भी नहीं करते, आप को हिचकी लग गई कैसे? "
"रोई है किसी छत पे, अकेले ही में घुटकर, उतरी जो लबों पर तो वो नमकीन थी बारिश। "
"दिल अगर हैं तो दर्द भी होंगा, इसका शायद कोई हल नहीं हैं।"
"तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं, रात भी आयी और चाँद भी था, मगर नींद नहीं।"
"वो चीज़ जिसे दिल कहते हैं, हम भूल गए हैं रख के कहीं।"
"कुछ बातें तब तक समझ में नहीं आती, जब तक ख़ुद पर ना गुजरे।"
"हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उनको, क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया?"
"बेहिसाब हसरते ना पालिये, जो मिला हैं उसे सम्भालिये।"
"शोर की तो उम्र होती हैं, ख़ामोशी तो सदाबहार होती हैं।"
"किसी पर मर जाने से होती हैं मोहब्बत, इश्क जिंदा लोगों के बस का नहीं।"
"कौन कहता हैं कि हम झूठ नहीं बोलते, एक बार खैरियत तो पूछ के देखियें।"
"तकलीफ़ ख़ुद की कम हो गयी, जब अपनों से उम्मीद कम हो गईं।"
"कैसे करें हम ख़ुद को तेरे प्यार के काबिल, जब हम बदलते हैं, तुम शर्ते बदल देते हो।"
"सीने में धड़कता जो हिस्सा हैं, उसी का तो ये सारा किस्सा हैं।"
"सहमा सहमा डरा सा रहता है, जाने क्यूं जी भरा सा रहता है।"
"एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है, मैं ने हर करवट सोने की कोशिश की।"
"ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में, एक पुराना ख़त खोला अनजाने में।"
इतना क्यों सिखाए जा रही है ज़िन्दगी हमें, कौन सी सदियाँ गुज़ारनी है यहाँ।
कुछ अलग करना हो तो भीड़ से हट के चलिए, भीड़ साहस तो देती हैं मगर पहचान छीन लेती हैं।
हँसता तो मैं रोज़ हूँ, मगर खुश हुए ज़माना हो गया।
अच्छी किताबें और अच्छे लोग तुरंत समझ में नहीं आते हैं, उन्हें पढना पड़ता हैं।
थोड़ा सा रफू करके देखिए ना, फिर से नई सी लगेगी जिंदगी ही तो है।
लोग कहते है की खुश रहो, मगर मजाल है की रहने दे।
मैं वो क्यों बनु जो तुम्हें चाहिए, तुम्हें वो कबूल क्यों नहीं जो मैं हूं।
बहुत छाले हैं उसके पैरों में, कमबख्त उसूलों पर चला होगा।
देर से गूंजते हैं सन्नाटे, जैसे हमको पुकारता है कोई। कल का हर वाक़िया था तुम्हारा, आज की दास्ताँ है हमारी।
सुनो, जब कभी देख लुं तुमको तो मुझे महसूस होता है कि दुनिया खूबसूरत है।
एक सपने के टूटकर चकनाचूर हो जाने के बाद, दूसरा सपना देखने के हौसले का नाम ज़िन्दगी हैं।
कोई खामोश ज़ख्म लगती है, ज़िंदगी एक नज़्म लगती है।
घर में अपनों से उतना ही रूठो कि आपकी बात और दूसरों की इज्जत, दोनों बरक़रार रह सके।
शायर बनना बहुत आसान है, बस एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल डिग्री चाहिए।
अपने साये से चौंक जाते हैं, उम्र गुज़री है इस क़दर तनहा।
कभी तो चौंक के देखे वो हमारी तरफ़, किसी की आँखों में हमको भी वो इंतजार दिखे।
तन्हाई की दीवारों पर, घुटन का पर्दा झूल रहा हैं, बेबसी की छत के नीचे, कोई किसी को भूल रहा हैं।
वक्त रहता नहीं कही भी टिक कर, आदत इसकी भी इंसान जैसी हैं।
हाथ छुटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते, वक्त की शाख से लम्हें नहीं तोडा करते।
मिलता तो बहुत कुछ है, ज़िंदगी में बस हम गिनती उन्ही की करते है, जो हासिल न हो सका।
एक बार तो यूँ होगा, थोड़ा सा सुकून होगा, ना दिल में कसक होगी, ना सर में जूनून होगा।
लकीरें हैं तो रहने दो, किसी ने रूठ कर गुस्से में शायद खींच दी थी, उन्ही को अब बनाओ पाला, और आओ कबड्डी खेलते हैं।
छोटा सा साया था, आँखों में आया था, हमने दो बूंदों से मन भर लिया।
सामने आया मेरे, देखा भी, बात भी की मुस्कुराए भी, किसी पहचान की खातिर कल का अखबार था, बस देख लिया, रख भी दिया।
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई, जैसे एहसान उतारता है कोई।
आदमी बुलबुला है पानी का, और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है, फिर उभरता है, फिर से बहता है, न समंदर निगल सका इसको, न तरीख़ तोड़ पाई है, वक्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का।
बीच आसमाँ में था, बात करते- करते ही चांद इस तरह बुझा, जैसे फूंक से दिया, देखो तुम, इतनी लम्बी सांस मत लिया करो।
सूरज झांक के देख रहा था खिड़की से, एक किरण झुमके पर आकर बैठी थी, और रुख़सार को चूमने वाली थी कि, तुम मुंह मोड़कर चल दीं और बेचारी किरण, फ़र्श पर गिरके चूर हुईं, थोड़ी देर ज़रा सा और वहीं रूकतीं तो।
आओ तुमको उठा लूँ कंधों पर, तुम उचकाकर शरीर होठों से चूम लेना, चूम लेना ये चाँद का माथा, आज की रात देखा ना तुमने, कैसे झुक-झुक के कोहनियों के बल, चाँद इतना करीब आया है।
सहम सी गयी है ख्वाहिशें, ज़रूरतों ने शायद उनसे ऊँची आवाज़ में बात की होगी।
ज्यादा कुछ नहीं बदलता उम्र के साथ, बस बचपन की ज़िद्द समझौतों में बदल जाती हैं।
बचपन में भरी दुपहरी में नाप आते थे पूरा मोहल्ला, जब से डिग्रियां समझ में आयी पांव जलने लगे हैं।
कुछ ज़ख्मों की उम्र नहीं होती हैं, ता उम्र साथ चलते हैं, जिस्मो के ख़ाक होने तक।
समेट लो इन नाजुक पलो को, ना जाने ये लम्हे हो ना हो, हो भी ये लम्हे क्या मालूम शामिल, उन पलो में हम हो ना हो।
टूट जाना चाहता हूँ, बिखर जाना चाहता हूँ, में फिर से निखार जाना चाहता हूँ, मानता हूँ मुश्किल हैं, लेकिन में गुलज़ार होना चाहता हूँ।
गुलाम थे तो हम सब हिंदुस्तानी थे, आज़ादी ने हमें हिन्दू मुसलमान बना दिया।
सुना हैं काफी पढ़ लिख गए हो तुम, कभी वो भी पढ़ो जो हम कह नहीं पाते हैं।
मैंने मौत को देखा तो नहीं, पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी, कमबख्त जो भी उससे मिलता हैं, जीना ही छोड़ देता हैं।
उन्हें ये ज़िद थी कि हम बुलाये, हमें ये उम्मीद थी कि वो पुकारे, हैं नाम होठों पे अब भी लेकिन, आवाज़ में पड़ गयी दरारे।
आदतन तुम ने कर दिए वादे, आदतन हम ने ऐतबार किया, तेरी राहो में बारहा रुक कर, हम ने अपना ही इंतज़ार किया, अब ना मांगेंगे ज़िंदगी ए रब, ये गुनाह हम ने एक बार किया।
पलक से पानी गिरा है, तो उसको गिरने दो, कोई पुरानी तमन्ना पिघल रही होगी।
वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी, वो नफ़रत भी तुम्हारी थी, हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे मांगते, वो शहर भी तुम्हारा था, वो अदालत भी तुम्हारी थी।
बहुत मुश्किल से करता हूँ, तेरी यादों का कारोबार, मुनाफा कम है, पर गुज़ारा हो ही जाता है।
ऐ हवा उनको कर दे खबर मेरी मौत की, और कहना कि, कफ़न की ख्वाहिश में मेरी लाश, उनके आँचल का इंतज़ार करती है।
तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं, तेरे बिना पर ज़िंदगी भी लेकिन ज़िंदगी तो नहीं।
तेरी यादों के जो आखिरी थे निशान, दिल तड़पता रहा, हम मिटाते रहे, ख़त लिखे थे जो तुमने कभी प्यार में, उसको पढ़ते रहे और जलाते रहे।
कहू क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे है, क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तकलीफ़ होती है, तुम्हारा क्या तुम्हें तो राहे दे देते हैं काँटे भी, मगर हम खांकसारों को बड़ी तकलीफ़ होती है।
तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं, तेरे बिना पर ज़िंदगी भी लेकिन ज़िंदगी तो नहीं।
देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता ज़रा देखना, सोच-संभल कर ज़रा पाँव रखना, ज़ोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं। काँच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में, ख़्वाब टूटे न कोई, जाग न जाये देखो, जाग जायेगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा।
शब्द नए चुनकर कविता हर बार लिखू, उन दो आँखों में अपना सारा प्यार लिखू, वो में विरह की वेदना लिखू या मिलन की झंकार लिखू, कैसे इन चंद लफ्जो में दोस्तों अपना सारा प्यार लिखू।
गए थे सोचकर कि बात बचपन की होगी, मगर दोस्त मुझे अपनी तरक्की सुनाने लगे।
ना दूर रहने से रिश्ते टूट जाते हैं, ना पास रहने से जुड़ जाते हैं, यह तो एहसास के पक्के धागे हैं, जो याद करने से और मजबूत हो जाते हैं।
एक सो सोलह चाँद की रातें, एक तुम्हारे कंधे का तिल, गीली मेहँदी की खुश्बू, झूठ मूठ के वादे, सब याद करादो, सब भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो।
याद आएगी हर रोज़ मगर, तुझे आवाज़ ना दूँगा, लिखूँगा तेरे ही लिए हर ग़ज़ल, मगर तेरा नाम ना लूँगा।
उम्र ज़ाया कर दी लोगो ने, औरों में नुक्स निकालते निकालते, इतना खुद को तराशा होता, तो फरिश्ते बन जाते।